पापमोचिनी एकादशी - फाल्गुन वद ११

चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को पापमोचनी एकादशी मनाई जाती है । इस एकादशी को बेहद खास माना जाता है।
पापमोचनी एकादशी व्रत रखने और इस दिन भगवान विष्णु की विधि विधान पूजा करने से व्यक्ति को कई बड़े पापों से छुटकारा मिल जाता है। ऐसे व्यक्ति मोक्ष के हकदार बन जाते हैं। इस व्रत का पालन करने से गायों के दान से भी ज्यादा पुण्यफल की प्राप्ति होती है।

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Last updated Sun, 19-Feb-2023 Hindi-gujarati
पूजा के लाभ
  • पापमोचनी एकादशी के दिन व्रत करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती हैं।
  • व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है।
  • भगवान विष्णु की विधि विधान पूजा करने से व्यक्ति को कई बड़े पापों से छुटकारा मिल जाता हैऔर ऐसे व्यक्ति मोक्ष के हकदार बन जाते हैं।
  • इस व्रत का पालन करने से गायों के दान से भी ज्यादा पुण्यफल की प्राप्ति होती है।

पूजाविधि के चरण
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स्थापन
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  • सर्व प्रथम एक लकड़ी का बाजोठ /पाटला / चौकी पर , लाल वस्त्र (१ मीटर) बिछाकर मध्य मेंविष्णु जी की फोटो यामूर्ति की स्थापना करे। फिरविष्णु जी कुमक़ुम ,अक्षत,अबीर, गुलाल, थोड़ी सी तुलसीपत्र और फूलो का हार चढ़ाना है। उसके आगे पाटला ऊपर कटोरी में पंचमेवा ,पांच फल , पंचामृत, आरती की थाली एवं प्रसाद रखे।
  • अत्राद्य महामांगल्यफलप्रदमासोत्तमे मासे, अमुक मासे ,अमुक पक्षे,अमुक तिथौ , अमुक वासरे ,अमुक नक्षत्रे , ( जो भी संवत, महीना,पक्ष,तिथि वार ,नक्षत्र हो वही बोलना है )........ गोत्रोत्पन्न : ........... सपरिवारस्य सर्वारिष्ट निरसन पूर्वक सर्वपाप क्षयार्थं, दीर्घायु शरीरारोग्य कामनया धन-धान्य-बल-पुष्टि-कीर्ति-यश लाभार्थं, श्रुति स्मृति पुराणतन्त्रोक्त फल प्राप्तयर्थं, सकल मनोरथ सिद्ध्यर्थ पापमोचिनी एकादशी व्रत पूजा करिष्ये।
  • पापमोचनी एकादशी व्रत की कथा स्वयं ब्रह्मा जी ने नारद जी को सुनाई थी।
    एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी के बारे में बताने को कहा। तब श्रीकृष्ण ने कहा कि इस एकादशी को पापमोचनी एकादशी के नाम से जानते हैं। इस व्रत को करने से पाप का नाश होता है और संकट मिट जाते हैं। उन्होंने ब्रह्मा जी द्वारा नारद मुनि को सुनाई कथा के बारे में बताना शुरु किया, जो कुछ इस प्रकार से है :- एक चैत्ररथ वन था, जिसमें देवराज इंद्र अप्सराओं और देवताओं के साथ विचरण करते थे। एक बार च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी चैत्ररथ वन में तपस्या करने गए थे। वे भगवान शिव शंकर के भक्त थे। वे शिव जी की तपस्या करने लगे। कुछ समय व्यतीत होने के बाद कामदेव ने मंजुघोषा नाम की एक अप्सरा को मेधावी ऋषि का तप भंग करने के लिए भेजा।
    उस समय मेधावी युवा थे और वे मंजुघोषा के नृत्य एवं सुंदरता पर मुग्ध हो गए। वे शिव भक्ति से विमुख हो गए। मेधावी मंजुघोषा के साथ रति क्रीड़ा में लीन हो गए. ऐसा करते हुए 57 साल बीत गए। तब एक दिन मंजुघोषा ने मेधावी से वापस देवलोक जाने की अनुमति मांगी।
    मंजुघोषा की वापसी की आज्ञा मांगने पर मेधावी को अपनी गलती का एहसास हुआ कि वे तो शिव जी की तपस्या से विमुख हो गए हैं।आत्मज्ञान होने के बाद उन्होंने मंजुघोषा को शिव भक्ति से विमुख करने का कारण माना। क्रोधित होकर उन्होंने मंजुघोषा को पिशाचनी होने का श्राप दे दिया। तब मंजुघोषा डर से कांपने लगी, उसने क्षमा याचना करते हुए श्राप से मुक्ति का उपाय पूछा। तब मेधावी ने उसे पापमोचनी एकादशी व्रत रखने को कहा। मंजुघोषा ने पापमोचनी एकादशी व्रत विधि विधान से किया, जिसके परिणाम स्वरुप उसके पाप मिट गए और वह श्राप से मुक्त होकर देवलोग चली गई। काम क्रीड़ा में लीन रहने के कारण मेधावी भी तेजहीन हो गए थे। तब उन्होंने भी पापमोचनी एकादशी व्रत रखा. व्रत के प्रभाव से मेधावी के भी पाप नष्ट हो गए।
  • ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।
    विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।। ॐ।।
    तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी ।
    गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ।।ॐ।।
    मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी।
    शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई।। ॐ।।
    पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है ।
    शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै ।। ॐ ।।
    नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
    शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै ।। ॐ ।।
    विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी,
    पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की ।। ॐ ।।
    चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली,
    नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली ।। ॐ ।।
    शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी,
    नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी।। ॐ ।।
    योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी।
    देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी ।। ॐ ।।
    कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
    श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए।। ॐ ।।
    अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला।
    इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला।। ॐ ।।
    पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी।
    रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ।। ॐ ।।
    देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया।
    पावन मास में करूं विनती पार करो नैया ।। ॐ ।।
    परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।।
    शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी ।। ॐ ।।
    जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।
    जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै।। ॐ ।।
  • माखन / मिसरी / मेवा
पूजन सामग्री
  • बाजोठ / चौकी - १ नंग
  • पाटला - १ नंग
  • लाल वस्त्र - सवा मीटर स्थापन के लिए
  • विष्णु भगवान् की मूर्ति /फोटो
  • फूलो के हार -१ और फूल अलग से
  • गंगाजल और पानी - आवश्यकता अनुसार
  • दीपक -१
  • धुप - अगरबत्ती
वर्णन

पद्म पुराण के अनुसार एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पापों से मुक्ति प्राप्त करने का साधन पूछा था, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें एकादशी व्रत की महिमा के बारे में बताया थ। 
श्रीकृष्ण भगवान ने कहा था कि एकादशी व्रत दुःखों और त्रिविध तापों से मुक्ति दिलाने वाला, हजारों यज्ञों के अनुष्ठान की तुलना करने वाला, चारों पुरुषार्थों को सहज ही देने वाला ह।
भगवान श्रीकृष्ण के बताए नियमों के अनुसार युधिष्ठिर ने ये व्रत रखा थ। इससे उनके तमाम दुख दूर हुए थे और पापों का अंत हुआ था।